विद्याधर चन्देल और तुर्कों की चुनौती।

विद्याधर चन्देल और तुर्कों

विद्याधर को अपने शासन काल में तुर्कों के आक्रमण का भी सामना करना पड़ा। तुर्क आक्रमणकारी महमूद गजनवी द्वारा चन्देल साम्राज्य पर आक्रमण का कारण यह था कि विद्याधर ने महमूद द्वारा पराजित किये गये प्रतिहार शासक राज्यपाल की हत्या करके त्रिलोचन पाल को वहां का शासक बना दिया था। अतः महमूद गजनवी ने इसे अपना अपमान समझा और त्रिलोचन पाल के राज्य पर आक्रमण कर दिया। त्रिलोचन पाल को पराजित करने के बाद महमूद ने विद्याधर पर आक्रमण किया। महमूद और विद्याधर में युद्ध के विषय में मुसलमान इतिहासकारों में बहुत मतभेद है। फरिश्ता का कथन है कि विद्याधर बिना युद्ध लड़े ही भाग खड़ा हुआ जबकि निजामुद्दीन का कथन है कि महमूद गजनवी स्वयं विद्याधर की विशाल सेना को देखकर घबड़ा गया था और वह यह सोचने लगा था कि विद्याधर के ऊपर आक्रमण करके उसने बड़ी मूल की लेकिन ईश्वर ने उसकी यह प्रार्थना सुन ली और विद्यापर डरकर रात को ही भाग गया।

ताजुल मासिर के उल्लेख के अनुसार महमूद और विद्याधर की सेनाओं में दिनभर युद्ध होता रहा लेकिन कोई निर्णय न हो सका और दूसरे दिन जब गजनवी पुनः युद्ध के मैदान में आया तो हिन्दू सेना मैदान छोड़कर भाग चुकी थी परन्तु इतिहासकारों का मानना है कि दोनों पक्षों में युद्ध का निर्णय नहीं हो सका और महमूद कुछ लूटपाट करके गजनी वापस चला गया। 1022 ई. में महमूद गजनवी ने पुनः विद्याधर पर आक्रमण किया।

चालुक्यों के आरम्भिक इतिहास का वर्णन कीजिए।

वह बहुत दिनों तक कालिंजर पर घेरा डाले रहा लेकिन उसे विद्याधर चन्देल के विरुद्ध कोई सफलता नहीं मिली। अन्त में विद्याधर और महमूद गजनवी के बीच सन्धि हो गयी और दोनों ने एक दूसरे को उपहार दिया। उपरोक्त वर्णन से पता चलता है कि तत्कालीन भारतीय नरेशों में केवल विद्याधर ही ऐसा नरेश था जिसने अपनी वीरता और कूटनीति से महमूद का सामना किया और उसके सामने घुटने नहीं टेके। निःसन्देह यह उसकी महान सफलता थी।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top