विग्रहराज चतुर्थ के चरित्र पर प्रकाश डालिए।

विग्रहराज चतुर्थ का चरित्र

विग्रहराज चतुर्थ (बीसलदेव) एक महान चाहमान शासक था। वह एक महान विजेता भी था। उसने अपने शासनकाल में महान उपलब्धियाँ अर्जित की। शिवालिक स्तम्भलेख से पता चलता है कि उसने शिवालिक प्रदेश तक का अभियान किया था, जहाँ उसने अशोक स्तम्भ के ऊपर अपना लेख उत्कीर्ण करवाया था।

विग्रहराज एक विद्यानुरागी शासक था। प्रबन्ध चिन्तामणि में उसे कवि बान्ध्व कहा गया है। उसने स्वयं एक संस्कृत नाटक हरिकेलिनाटिका की रचना की संस्कृत का प्रकाण्ड विद्वान सोमदेव उसकी राजसभा में रहता था जिसने ललित विग्रहराज नामक नाटक लिखा। उसके द्वारा अजमेर में एक संस्कृत विद्यालय की स्थापना की गयी। इस संस्कृत विद्यालय की दीवारों पर उसने हरिकेलिनाटिका और ललितविग्रहराज की पंक्तियों को लिखाया। अजमेर में उसने बीसलपुर नामक एक विशाल सरोवर, मन्दिर और प्रासाद बनवाये थे।

विद्याधर चन्देल और तुर्कों की चुनौती।

उसने अपने नाम पर बीसलपुर नामक नगर भी बसाया था विग्रहराज चतुर्थ शैव धर्म का उपासक था लेकिन उसने अन्य धर्मों को भी सम्मान की दृष्टि से देखा। उसने अनेक जैन विग्रहों का निर्माण करवाया। एक जैन धर्माचार्य धर्मघोषसूरी के कहने पर उसने एकादशी के दिन पशुवध बन्द करा दिया था। विद्वानों ने उसके शासनकाल को चामान वंश का स्वर्णकाल कहा है।

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