धार्मिक बहुलताबाद पर एक निबंध लिखिए।

धार्मिक बहुलताबाद भारत एक धर्म प्रधान देश है। यहाँ प्राचीन काल से ही विभिन्न प्रकार के धार्मिक सम्प्रदाय का उदय हो चुका था जिसमें हिन्दू, इस्लाम, बौद्ध, जैन, सिक्ख एवं पारसीक एवं कतिपय अन्य जनजातीय धर्मों की प्रधानता रही है। इन प्रमुख धर्मों में भी कालान्तर में कई सम्प्रदाय हो गए- यथा हिन्दू धर्म, वैष्णव, शैव, शाक्त एवं ब्रह्म सम्प्रदाय में बंट गया। बौद्ध धर्म- महायान एवं हीनयान तथा कतिपय अन्य सम्प्रदाय में विभाजित हो गया, जैन धर्म श्वेताम्बर एवं दिगम्बर, इस्लाम शिया एवं सुन्नी आदि सम्प्रदायों में विभाजित हो गया। परन्तु इन धार्मिक विविधताओं एवं विभिन्नताओं के बावजूद धर्म का भारतीय समाज एवं संस्कृति को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका है। परन्तु राष्ट्रीय एकीकरण में यह धार्मिक बहुलता बड़ी बाधा के रूप में भी सामने आती है जिसका प्रमुख कारण इनकी धार्मिक मान्यताओं एवं धर्मावलम्बियों के मध्य होने वाले संघर्ष हैं। यदि जनसंख्या की दृष्टि से देखा जाय तो भारत में हिन्दू धर्म को मानने वालों की संख्या सर्वाधिक है। सन् 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की कुल 1,210,193, 422 जनसंख्या मैं हिन्दू 827,578,868; मुसलमान 138, 188,240 ईसाई 24,080,016, सिक्ख 19,215,730; बौद्ध 7,955,208; जैन 4,225,053 तथा अन्य धर्मावलम्बी 6,639,626 थे। कुल जनसंख्या में 80.5 प्रतिशत हिन्दू, 13.4 प्रतिशत मुसलमान, ईसाई 2.3 प्रतिशत, सिक्ख 1.9 प्रतिशत, बौद्ध 0.8 प्रतिशत, जैन 0.4 प्रतिशत और अन्य 0.6 प्रतिशत थे। इन आंकड़ों के आधार पर हिन्दुओं को बहुसंख्यक बताया गया है और शेष सभी को अल्पसंख्यक इस प्रकार स्पष्ट है कि उक्त सभी धर्मों में हिन्दू धर्म को मानने वालों की संख्या सर्वाधिक है जो जनसंख्या की लगभग 82 प्रतिशत भाग है। जबकि मात्र 18 प्रतिशत जनसंख्या वाले लोग अन्य धर्मों को मानते हैं। इतना होने के बावजूद भी भारतीय संविधान में किसी भी धर्म को राष्ट्र धर्म नहीं बनाया गया है।

भारत के प्रमुख धर्म

(1) हिन्दू धर्म

भारत में वैदिक काल से ही हिन्दू धर्म का सूत्रपात “हो चुका था जिसने कालान्तर में धार्मिक आंदोलनों का सहारा लेते हुए प्रमुख धर्म के रूप में स्वयं को स्थापित किया। इस धर्म के अंतर्गत अनेक दैवी शक्तियों एवं प्राकृतिक शक्तियों की देवताओं के रूप में पूजा की जाती थी। इन देवताओं को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है

  1. आकाश के देवता यथा सूर्य, सविता, मित्र, पूषा, विष्णु, मित्र वरुण आदि,
  2. अन्तरिक्ष के देवता यथा इन्द्र, वायु, पर्यजन्य तथा
  3. पृथ्वी के देवता यथा अग्नि, सोम आदि।

कालान्तर में हिन्दू धर्म कई सम्प्रदायों में बँट गया, यथा, वैष्णव, शैव एवं सम्प्रदाय। परन्तु देवी-देवताओं में ऊंच-नीच का कोई प्रश्न नहीं था। देवी-देवताओं को दयालुता, सर्वज्ञता, उदारता, अपार शक्ति, निरखलता, अमरता आदि दैवी गुणों से विभूषित माना गया। उनकी दया की प्राप्ति के लिए इनकी आराधना की जाती थी जो कि प्रार्थनाओं एवं यहाँ द्वारा होती थी ये देवी-देवता सद् एवं असत् व्यवहार के लिए क्रमश: वरदान व दण्ड देते थे। वैदिक धर्म में विभिन्न देवताओं को सन्तुष्ट व प्रसन्न करने के लिए भिन्न प्रकार के यज्ञों का विधान किया गया जो कि कालान्तर में अत्यन्त जटिल, दुरूह एवं रूढ़िवादी हो गए। वैदिककाल के अन्तिम भाग में डॉ० यादव के शब्दों में ‘उपनिषद में यज्ञों के कर्म-मार्ग अर्थात् यज्ञ आदि पुण्य कर्मों द्वारा स्वर्ग तथा मुक्ति की प्राप्ति के मार्ग का रोध किया गया है और ज्ञान मार्ग अर्थात, वैराग्य, संसार-त्याग तथा ज्ञान द्वारा मुक्ति प्राप्ति आदर्श का प्रतिपादन किया गया है।

(2) बौद्ध धर्म-

इस धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध थे। उन्होंने बौद्ध धर्म का विस्तार किया और अपने सिद्धान्तों को प्रतिपादित किया। बौद्ध धर्म के सिद्धान्त- युद्ध ने जरामरण से मुक्त होने के लिए चार आर्य सत्यों का प्रतिपादन किया। ये चार आर्य सत्य है-

  1. दुःख,
  2. दुःख का कारण,
  3. दु:ख निरोध,
  4. दुःख निरोध गामिनी प्रतिप्रदा।

गौतम बुद्ध ने संसारिक दुखों से मुक्ति हेतु अष्टांगिक मार्ग का प्रतिपादन किया ये अष्टांगिक मार्ग है-

  1. सम्पक दृष्टि
  2. सम्यक् संकल्प
  3. सम्यक वाक्
  4. सम्यक् कर्मान्त
  5. सम्यक् आजोव
  6. सम्यक व्यायाम
  7. सम्यक् स्मृति
  8. सम्यक समाधि।

(3) जैन धर्म-

गौतम बुद्ध के समय आविर्भूत होने वाले अरूढ़िवादी सम्प्रदाय में जैन धर्म का नाम सर्वप्रमुख है। जैन आचार्यों में महावीर स्वामी का नाम सर्वाधिक प्रसिद्ध है। ये जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर थे। इन्होंने सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह एवं वर्ष के विधान प्रस्तुत किए। इसके अतिरिक्त मोक्ष के लिए सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान एवं सम्यक चरित्र का होना आवश्यक बताया।

(4) इस्लाम धर्म-

इस्लाम धर्म के प्रवर्तक मुहम्मद साहब थे। यह एकेश्वरवादी धर्म है। इस्लाम धर्म में संयम, परोपकार, क्षमा, ईमानदारी निलभिता के क्रियात्मक पक्ष के अन्तर्गत आग्रलिखित बातें बताई गई हैं- (1) कलमा- मुसलमानों को अग्रलिखित वाक्य पर सम्पूर्ण विश्वास होना चाहिए लाइलाहा इल्लल्ला मुहम्मद रसूलल्लाह अर्थात् कोई नहीं है पालनहार अतिरिक्त अल्लाह के और हज़रत मुहम्मद (स०) अल्लाह के देवदूत (पैगम्बर) हैं। (2) प्रतिदिन 5 समय नमाज पढ़ना (3) साल में अपनी ईमानदारी से कमाएँ हुए धन का 2.5 (ढाई प्रतिशत) गरीबों में दान करना (4) रमजान में एक माह का रोजा (व्रत) रहना तथा (5) जीवन में कम से कम एक बार मक्का की यात्रा (हज करना) । इस धर्म के अन्तर्गत मूर्ति पूजा, अवतारवाद तथा ऊँच-नीच के भेद भाव का घोर विरोध किया गया है। वह मानव समानता के आदर्श पर विशेष बल देता है।

(5) ईसाई धर्म

ईसाई धर्म के प्रवर्तक पैगम्बर ईसा (Jesus Christ ) थे। इस धर्म का आदि स्थान प्राचीन पैलेस्टाइन है। बहुत समय तक ईसाई धर्म में एकमत बना रहा किन्तु कालान्तर में यह परम्परागत मत कैथोलिक एवं आधुनिक मत प्रोटेस्टैन्ट इन दो मतों में विभाजित हो गया। भारतवर्ष में इन दोनों मर्ती के अनुयायी पाए जाते हैं। पैगम्बर ईसा ने ईश्वर की एकता तथा उसकी निष्पक्षता एवं सर्ववात्सलता का प्रतिपादन किया और प्रेम, अहिंसा, करुणा, दया, त्याग, मानव सेवा, परोपकार आदि महान आदशों का संदेश दिया। वे सदैव इस बात पर बल देते थे कि सभी मनुष्य एक ही परमपिता परमेश्वर की सन्तान हैं और इस प्रकार सभी आपस में भाई-भाई है। उन्होंने ईश्वर के प्रति सेवा, श्रद्धा और प्रेम-भाव की शिक्षा प्रदान की और निःसहाय व दीन-दुर्बलों की सेवा को धार्मिक आचार का एक महत्वपूर्ण अंग बतलाया।

समाज में जेण्डर के समाजीकरण की प्रक्रिया का वर्णन कीजिये।

(6) पारसी धर्म-

पारसी धर्म के संस्थापक जरथुस्र थे। भारत में लगभग 8वीं सदी में इस धर्म का पदार्पण हुआ। ‘अवेस्ता’ इनकी प्रमुख धार्मिक पुस्तक है। पारसीक लोग भी हिन्दुओं की तरह यज्ञ और अनुष्ठानों में विश्वास करते हैं। वे भी अग्नि-पूजक है और प्रत्येक पारसी के घर में चौबीसों घण्टे अग्नि का प्रञ्चलित रहना आवश्यक माना जाता है। हिन्दुओं के समान ये लोग भी अपने बच्चों का उपनयन (जनेऊ) संस्कार सम्पन्न कराते हैं जिसे ‘नओजोत’ कहते हैं। इनमें भी बलि, हवन, आचमन एवं आहुतियों का प्रचलन है। श्राद्ध, दान, धार्मिक, कर्मकाण्डों, आत्मा तथा कर्म के बारे में विचार भी इसमें हिन्दू धर्म की तरह ही प्रचलित है। पारसी धर्म की प्रमुख मान्यता अलिखित हैं-

  1. अहोरमन्दा नामक ईश्वर ने ही सम्पूर्ण सृष्टि की रचना की है,
  2. वही जीवन और प्रकाश को देने वाला है तथा सतु का प्रतीक है,
  3. मृत्यु और अन्धकार को देने वाली अग्रामन्यु अथवा अहिरामन नामक शक्ति है जो असत् का प्रतीक है,
  4. सम्पूर्ण संसार सत् एवं असत् दो भागों में विभाजित है। सत् के अनुयायी होरमध्दा की ओर तथा असत् के अनुयायी अहिरामन की ओर जाते हैं। वह समय आ रहा है जबकि होरमग्द अहिरामन को समाप्त कर देगा।
  5. मनुष्य सत् एवं असत् किसी भी मार्ग को चुनने के लिए स्वतन्त्र हैं, परन्तु सतु मार्ग से ही उसका उद्धार सम्भव है,
  6. अग्नि सत् का बाह्य रूप है, इसलिए उसकी उपासना आवश्यक है,
  7. सद् विचार, सद् वचन एवं सत्कर्म से ही मानव का कल्याण हो सकता है। पारसी धर्म में अग्नि मन्दिर का विशिष्ट स्थान है जहाँ इस धर्म के अनुयायी जाकर प्रार्थना करते हैं। कट्टर पारसी प्रतिदिन और सामान्य पारसी वर्ष में चार बार अग्नि मन्दिर में जाकर ईश्वर

(7) सिक्ख धर्म

गुरु नानक सिक्ख धर्म के संस्थापक थे। इन्होंने उपनिषद् के विशुद्ध एकेश्वरवाद के सिद्धान्त को अपने धर्म में जगह दी तथा हिन्दू और मुसलमानों के धर्म में कोई अंतर नहीं बताया। उन्होंने इन दोनों धर्मों के दोषों की ओर संकेत किया। मुसलमान धर्म में पाए जाने वाले धार्मिक संस्कार के दिखाये और हिन्दू धर्म में पायी जाने वाली पूजा की प्रथा का विरोध किया। गुरू नानक के सिद्धान्तों व उपदेशों का संग्रह गुरु ग्रन्थ साहब है जो कि सिक्खों का पवित्रतम धर्म ग्रन्थ समझा जाता है। गुरु नानक आचरण की शुद्धता पर अत्यधिक बल देते थे और उसी को अपने धर्म या उपदेश का ‘मूलतन्त्र मानते थे। उनका कथन था कि “ईश्वर नाम के सम्मुख जाति और कुल के बन्धन निरर्थक हैं। उन्होंने ईमानदारी, विश्वासपात्रता, सत्यनिष्ठा, दान, दया, मद्यनिषेध आदि उच्चतम आदशों के पालन करने का आदेश दिया।

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