अनुसूचित जनजातियों की वर्तमान समस्याएँ।अनुसूचित जनजातियों की समस्याएँ

अनुसूचित जनजातियों की वर्तमान समस्याएँ (Recent Problems of Sccheduled Tribes)-मजूमदार और मदान ने भारतीय जनजातियों की समस्याओं को दो भागों में विभक्त किया है- प्रथम तो वे समस्याएँ हैं जो संपूर्ण भारतीय समाज से संबंधित है और दूसरी समस्याएँ वे हैं जो केवल जनजातियों की विशिष्ट समस्याएँ हैं। प्रथम प्रकार की समस्याओं को इन विद्वानों ने ‘सामाजिक आर्थिक समस्याएँ कहा है और दूसरी समस्याओं का संबंध संस्कृति संपर्क से है। भारतीय जनजातियों की मुख्य समस्याओं का संक्षिप्त विश्लेषण निम्न प्रकार किया जा सकता है-

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(i) निर्धनता के कारण रोगों का प्रसार- सभ्य लोगों ने अर्धनग्न आदिवासियों को अश्लीलता के विशेषण दिये तो नये लोगों की शर्म निभाने के लिए उन्होंने थोड़े-बहुत कपड़े पहनने प्रारम्भ कर दिये किंतु कपड़े पहनना ही काफी नहीं होता, धोना और बदलना भी जरूरी है पर साबुन और कई जोड़ी कपड़े कहाँ से आये? फलस्वरूप आर्थिक हीनता के शिकार आदिवासी गंदे-फटे और अनधोये कपड़ों का प्रयोग करते रहते हैं। वे फटने पर ही शरीर से उतारते हैं। इन कपड़े में जूँये पैदा हो जाते हैं, पसीना और धूल इनसे लिपटे रहते हैं। बेचारे आदिवासी अनेक चर्म रोगों के साथ बुखार के शिकार हो जाते हैं।

(ii) मनोवैज्ञानिक कुप्रभाव- सांस्कृतिक संपर्क का एक मनोवैज्ञानिक कुप्रभाव जनजातियों पर यह पड़ा कि वे बाहरी लोगों को श्रेष्ठ और स्वयं को निष्कृष्ट मानने लगे। बाहरी लोगों ने इन भोली जनजातियों को सभ्य बनाने के लिए उनके धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन में परिवर्तन करने की कोशिश की जिससे उनके मन में हीन भावना पनपने लगी और वे और वे अपने हर व्यवहार को खराब समझने लगे।

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(iii) धर्म परिवर्तन के कारण परम्परागत जीवन का परित्याग- जिन आदिवासियों ने अपना धर्म परिवर्तन कर लिया था जो सभ्य लोगों के निकट संपर्क में आये उन्होंने उपरोक्त हीन भावना के परिणामस्वरूप अपनी परम्परागत जीवन पद्धति का ही परित्याग कर दिया। धर्म परिवर्तन के कारण अनेक आदिवासी ईसाई मिशनरियों के रहन-सहन का अनुकरण करने लगे। डॉ. मजूमदार के अनुसार इस अनुकरण में उन्हें आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। मजूमदार ने एक उदाहरण दिया है जिसमें बताया गया है कि क्रिसमस के पर्व पर एक ईसाई पादरी की दावत करने के लिए एक ईसाई आदिवासी को कई दिन उपवास करना पड़ा।

(iv) सभ्य समाज द्वारा शोषण- सभ्य समाज के अनेक लोगों ने इन सीधे-साधे लोगों का अनेक प्रकार से शोषण किया है। राजकीय अधिकारियों ने इन्हें गँवार और नीचा माना। योगेश अटल के शब्दों में “पुलिस अधिकारी इन पर अपना दबदबा जमाते है। पटवारी लोग इन्हें परेशान करते हैं और ठेकेदार तथा व्यापारी इन्हें लूटते हैं। ” प्रशासक भी इनके साथ सहानुभूतिपूर्ण आचरण नहीं करते। उधार देने वाले सभ्य समाज के महाजनों ने इन्हें मुट्ठी भर छोटे सिक्के उधार देकर इनकी बीघों जमीनें हड़प कर ली हैं।

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जनजातीय कार्य मंत्रालय अनुसूचित जनजातियों के विकास के लिए वर्तमान में निम्नलिखित केंद्रीय प्रयोजित स्कीम चला रहा है:

  • अनुसूचित जनजातियाँ/बुक बैंक के लिए पोस्ट मैट्रिक छात्रवृति
  • अनुसूचित जनजाति विद्यार्थियों की मैरिट का उन्नयन
  • अनुसूचित जनजाति विद्यार्थियों के लिए पोस्ट मैट्रिक छात्रवृति
  • बालिका छात्रावास
  • बालक छात्रावास
  • आश्रम स्कूलों की स्थापना
  • अनुसंधान और प्रशिक्षण
  • सूचना और संचार मिडिया
  • राष्ट्रीय जनजातीय कार्य पुरस्कार
  • उत्कृष्टता केन्द्र
  • अनुसूचित जनजातियों के लिए अखिल भारतीय प्रकृति या अन्तर्राज्यीय के प्रकृति सहायक परियोजनाएं
  • जनजातीय त्योहारों का आयोजन
  • जनजातियों द्वारा दौरों का आदान-प्रदान
  • प्रबोधन और मूल्यांकन
  • सूचना तकनीकी
  • केन्द्रीय
  • पूर्वोत्तर के लिए एकमुस्त प्रावधान

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अनुसूचित जनजातियों में साक्षरता में सुधार के बारे में, जनजातीय कार्य मंत्रालय ने पिछले एक वर्ष के दौरान निम्नलिखित पहल की है:

  1. 100 प्रतिशत वास्तविक नामांकन के लिए अभियान
  2. सभी व्यवधानों के लिए निम्न साक्षर जनजातियों एवं जिलों पर विशेष ध्यान
  3. आवासीय स्कूलों एवं अस्पतालों का निर्माणणु और विदयमान सुविधाओं का उन्नयन
  4. क्षेत्रीय भाषाओं सहित जनजातीय भाषाओं में प्राइमर्स का विकास
  5. जनजातीय त्योहारों के लिए एकेडमिक सत्र
  6. अपेक्षित अध्यापक लगाने के लिए स्कूल प्रबंध समिति

अनुसूचित जनजातीय बच्चों की शिक्षा के लिए सुरक्षा स्कीम:

  1. आश्रम स्कूलों की स्थापना और सुदृढीकरण
  2. छात्रावासों की स्थापना और सुदृढीकरण
  3. जनजातीय क्षेत्रों में व्यवसायिक प्रशिक्षण
  4. पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृति
  5. प्री-मैट्रिक छात्रवृति

बहुत से समुदाय है जिन्हें अनुसूचित जनजातियों की सूची में शामिल नहीं किया गया है और वे विभिन्न आधार पर अनुसूचित जनजाति के स्तर का दावा करते हैं। अनुसूचित जनजाति के अन्तर्गत समुदाय के प्रवेश के लिए वर्तमान प्रक्रिया अपारदर्शी है। कुछ दावा करने वाले समुदाय कुछ ऐतिहासिक गलतियों जैसे उनकी वर्तनी की गलती या रोमन लिपि में बोलीगत नामों की लिखाई के कारण स्वर-ध्वनि की भिन्नता के कारण छोड़ दिए गए हैं। जनजातीय कार्य मंत्रालय के सचिव की अध्यक्षता में गठित एक कार्यबल में इन मुद्दों की विस्तार से जांच की और जनजातीय कार्य मंत्रालय को अपनी सिफारिशें प्रस्तुत की। कार्यबल की सभी सिफारिशें मंत्रालय द्वारा स्वीकार कर ली गई है। कार्यबल की एक मुख्य सिफारिश यह है कि देवनागरी लिपि में समुदायों का वैध नाम वह है ताकि अंग्रेजी वर्णमाला में स्वर-ध्वनि भिन्नता से बहुनामों की अभिव्यक्ति न कर सके।

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